पाठ - 1, फ्रांस की क्रांति || Notes

 


·      फ्रांस की क्रांति फ्रांस के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण घटना रही है इस क्रांति के द्वारा राजतंत्र को समाप्त कर दिया गया और गणतंत्र की स्थापना की गयी|

·      1774 में बूर्बों राजवंश का लुई सोलहवां फ्रांस की राजगद्दी पर आसीन हुआ|

·      उस समय फ्रांस आर्थिक रूप से मजबूत नहीं था, लम्बे समय तक चले युद्धों के कारण फ्रांस के वित्तीय संसाधन नष्ट हो गए थे|

·      वर्साय के महल की शानो-शौकत को बनाये रखने की फिज़ूलखर्ची का बोझ अलग से था |

·      लुई सोलहवें के शासनकाल में फ्रांस ने अमेरिका के 13 उपनिवेशों को ब्रिटेन से आज़ाद कराने में सहायता दी थी जिससे कि फ्रांस पर दस अरब लिव्रे का कर्ज़ चढ़ गया था और 2 अरब लिव्रे का कर्ज़ पहले चढ़ा हुआ था और सरकार से कर्जदाता 10 प्रतिशत ब्याज की मांग करने लगे थे |

·      अन्य नियमित खर्चे जैसे सेना के रख-रखाव, राजदरबार, सरकारी कार्यालयों को चलाना|

·      इन खर्चों को वहन करने के लिए राजा ने करों में वृद्धि की |

·      अठारहवीं सदी में फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में विभाजित था और केवल तीसरे एस्टेट के लोग (जनसाधारण) कर अदा करते थे|

·      प्रथम एस्टेट में पादरी वर्ग शामिल था|

·      द्वितीय एस्टेट में कुलीन वर्ग आता था|

·      तृतीय एस्टेट में बड़े व्यवसायी, व्यापारी, अदालती कर्मचारी, वकील, किसान, कारीगर, छोटे किसान, भूमिहीन मजदूर, नौकर आते थे तृतीय एस्टेट में भी कुछ लोग अमीर हैं तो कुछ गरीब भी हैं|

·      प्रथम दो एस्टेट्स, पादरी वर्ग एवं कुलीन वर्ग के लोगों को कुछ विशेषाधिकार जन्म से प्राप्त थे सबसे महत्वपूर्ण विशेषाधिकार था - राज्य को दिए जाने वाले करों से छूट|

·      कुलीन वर्ग को कुछ अन्य सामंती विशेषाधिकार भी हासिल थे - वह किसानों से सामंती कर वसूल करता था|

·      चर्च किसानों से करों का एक हिस्सा, टाइद (धार्मिक कर) के रूप में वसूल करता था|

·      तीसरे एस्टेट के लोगों को सरकार को कर चुकाना होता था इन करों में टाइल (प्रत्यक्ष कर) और अनेक अप्रत्यक्ष कर शामिल थे|

·      लिव्रे फ्रांस की मुद्रा जिसे 1794 में समाप्त कर दिया गया|

·      एस्टेट - क्रांति-पूर्व फ्रांसीसी समाज में सत्ता और सामाजिक हैसियत को अभिव्यक्त करने वाली श्रेणी|

·      फ्रांस में 1789 तक जनसंख्या बढ़कर 2.8 करोड़ हो गयी अनाज उत्पादन की तुलना मांग तेजी से बढ़ी| खाद्य पावरोटी की कीमत में भी तेजी से वृद्धि हुईऔर मजदूरी महंगाई की दर से नहीं बढ़ रही थी परिणास्वरूप अमीर-गरीब की खायी चौड़ी होती गयी और लगातार सूखे या ओले के प्रकोप से पैदावार नष्ट हो जाती थी जिससे कि फ्रांस में जीविका संकट आम बात थी|

·      जीविका संकट - ऐसी चरम स्थिति जब जीवित रहने के न्यूनतम साधन भी खतरे में पड़ने लगते हैं|

·      अठारहवीं सदी में एक नए सामाजिक समूह का उदय हुआ जिसे मध्य वर्ग कहा गया, जिसने फैलते समुद्रपारीय व्यापार और ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों के उत्पादन के बल पर संपत्ति अर्जित की थी|

·      तीसरे एस्टेट में इन सौदागरों एवं निर्माताओं के अलावा प्रशासनिक सेवा के कर्मचारी वकील जैसे पेशेवर भी शामिल थे ये सब पढ़े-लिखे थे और इनका मानना था की समाज के किसी भी समूह के पास जन्मना विशेषाधिकार नहीं होने चाहिए किसी भी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत का आधार उसकी योग्यता ही होना चाहिए|

·      स्वतंत्रता, समान नियम, तथा समान अवसरों के विचार पर आधारित समाज की यह परिकल्पना जॉन लॉक और ज्याँ जाक रूसो जैसे दार्शनिकों ने प्रस्तुत की थी|

·      अपनीटू ट्रिटाइज़ेज ऑफ गवर्नमेंट’ में लॉक ने राजा के दैवी और निरंकुश अधिकारों के सिद्धांत का खंडन किया था|

·      रूसो ने इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए जनता और उसके प्रतिनिधियों के बीच एक सामाजिक अनुबंध पर आधारित सरकार का प्रस्ताव रखा|

·      मांतेस्क्यू ने ‘द स्पिरिट ऑफ लॉज़’ नामक रचना में सरकार के अंदर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन की बात कही|

·      एस्टेट्स जेनराल एक राजनितिक संस्था थी जिसमें तीनों एस्टेट अपने-अपने प्रतिनिधि भेजते थे इसकी अंतिम बैठक वर्ष 1614 में बुलाई गयी थी|

·      एस्टेट्स जेनराल के नियमों के अनुसार प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार था|

·      तीसरे वर्ग के प्रतिनिधियों ने मांग रखी कि अबकी बार पूरी सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होगा यह एक लोकतांत्रिक सिद्धांत था जिसे मिसाल के तौर पर रूसो ने अपनी पुस्तक सोशल कॉन्ट्रैक्ट’ में प्रस्तुत किया था|

·      तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि खुद को सम्पूर्ण फ़्रांसिसी राष्ट्र का प्रवक्ता मानते थे 20 जून को ये प्रतिनिधि वर्साय के इनडोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए उन्होंने अपने आप को नेशनल असेंबली घोषित कर दिया इनका नेतृत्व मिराब्यो और आबे सिए ने किया|

·      मिराब्यो का जन्म कुलीन परिवार में हुआ था लेकिन वह सामंती विशेषाधिकारों वाले समाज को खत्म करने की जरुरत से सहमत था|

·      आबे सिए मूलतः पादरी था और उसने 'तीसरा एस्टेट क्या है?' शीर्षक से एक प्रचार-पुस्तिका लिखी|

·      सम्राट ने सेना को पेरिस में प्रवेश करने का आदेश दे दिया था क्रुद्ध भीड़ ने 14 जुलाई को बास्तील पर धावा बोलकर उसे नेस्तनाबूद कर दिया|

·      लुई सोलहवें ने अंतत: नेशनल असेंबली को मान्यता दे दी और यह मान लिया कि उसकी सत्ता पर अब से संविधान का अंकुश होगा|

·       4 अगस्त, 1789 की रात को असेंबली ने करों, कर्तव्यों और बंधनों वाली सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित किया|

·      पादरी वर्ग के लोगों को भी अपने विशेषाधिकारों को छोड़ देने के लिए विवश किया गया, धार्मिक कर समाप्त कर दिया गया और चर्च के स्वामित्व वाली सम्पत्ति ज़ब्त कर ली गयी इस प्रकार कम से कम 20 अरब लिव्रे की संपत्ति सरकार के हाथ में गई|

·      नेशनल असेंबली ने वर्ष 1791 में सविंधान का प्रारूप पूरा कर लिया इसका मुख्य उद्देश्य था-सम्राट की शक्तियों को विभिन्न संस्थाओं-विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में विभाजित एवं हस्तांतरित करना इस प्रकार फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की नींव पड़ी|

·      वर्ष 1791 के संविधान ने कानून बनाने का अधिकार नेशनल असेंबली को सौंप दिया नेशनल असेंबली अप्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती थी सर्वप्रथम नागरिक एक निर्वाचक समूह का चुनाव करते थे जो पुन: असेंबली के सदस्यों को चुनते थे सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार नहीं था|

·      25 वर्ष से अधिक उम्र वाले केवल ऐसे पुरुषों को ही सक्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया था, जो कम-से-कम तीन दिन की मजदूरी के बराबर कर चुकाते थे शेष पुरुषों और महिलाओं को निष्क्रिय नागरिक के रूप में वर्गीकृत किया गया था|

·      निर्वाचक की योग्यता - असेंबली का सदस्य होने के लिए लोगों का करदाताओं की उच्चतम श्रेणी में होना जरुरी था|

·      संविधान 'पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र' के साथ शुरू हुआ था|

·      जीवन अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और क़ानूनी बराबरी के अधिकार को 'नैसर्गिक एवं अहरणीय' अधिकार के रूप में स्थापित किया गया अर्थात ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जन्मना प्राप्त थे और इन अधिकारों को छीना नहीं जा सकता| राज्य का यह कर्तव्य माना गया कि वह प्रत्येक नागरिक के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करे| 

·      राजीतिक प्रतीकों के मायने:

·      टूटी हुई ज़ंजीर - दासों को बांधने के लिए ज़ंजीरों का प्रयोग होता था टूटी हुई हथकड़ी उनकी आजादी का प्रतीक है|

·      छड़ों का बर्छीदर गठ्ठर - अकेली छड़ को आसानी से तोड़ा जा सकता है पर पूरे गठ्ठर को नहीं एकता में ही बल है|

·      त्रिभुज के अंदर रोशनी बिखेरती आँख - सर्वदर्शी आँख ज्ञान का प्रतीक है सूर्य की किरणें अज्ञान रूपी अँधेरे को मिटा देंगी|

·      राजदंड - शाही सत्ता का प्रतीक|

·      अपनी पूंछ मुँह में लिए साँप - सनातनता का प्रतीक| अंगूठी का कोई ओर-छोर नहीं होता|

·      लाल फ्राइजियन टोपी - दासों द्वारा स्वतंत्र होने के बाद पहनी जाने वाली टोपी|

·      नीला-सफेद-लाल - फ्रांस के राष्ट्रीय रंग|

·      डैनों वाली स्त्री - कानून का मानवीय रूप|

·      विधि पट - कानून सबके लिए समान है और उसकी नज़र में सब बराबर हैं|

 

·      रॉजेट दि लाइल द्वारा रचित मार्सिले गीत पहली बार मर्सिलेस के स्वयंसेवियों ने पेरिस की ओर कूच करते हुए गाया था इसलिए इस गाने का नाम मार्सिले हो गया जो अब फ्रांस का राष्ट्रगान है|

·      1791 के संविधान से सिर्फ अमीरों को ही राजनीतिक अधिकार प्राप्त हुए थे|

·      लोग राजनीतिक क्लबों में अड्डे जमा कर सरकारी नीतियों और अपनी कार्य योजना पर बहस करते थे इनमें से जैकोबिन क्लब सबसे सफल था जिसका नाम पेरिस के भूतपूर्व कॉन्वेंट ऑफ सेंट जेकब के नाम पर पड़ा जो बाद में राजनीतिक समूह का अड्डा बन गया था| जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यत: समाज के कम समृद्ध हिस्से से आते थे इनमें छोटे दुकानदार और कारीगर- जैसे जूता बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाज, छपाई करने वाले और नौकर दिहाड़ी मजदूर शामिल थे| इनका नेता मैक्समिलियन रोबेस्प्येर था|

·      जैकोबिन के एक बड़े वर्ग ने गोदी कामगारों की तरह धारीदार लम्बी पतलून पहनने का निर्णय किया ऐसा उन्होंने समाज के फैशनपरस्त वर्ग खासतौर से घुटने तक पहने जाने वाले ब्रीचेस पहनने वाले कुलीनों से खुद को अलग करने के लिए किया| यह ब्रीचेस पहनने वाले कुलीनों की सत्ता समाप्ति के एलान का उनका तरीका था इसलिए जैकोबिनों को सौं कुलॉत के नाम से जाना गया जिसका शाब्दिक अर्थ होता है बिना घुटन्ने वाले|  सौं कुलॉत पुरुष लाल रंग की टोपी भी पहनते थे जो स्वतंत्रता का प्रतीक थी लेकिन महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं थी|     

·      1792 की गर्मियों में जैकोबिनों ने खाद्य पदार्थों की महंगाई एवं अभाव से नाराज पेरिसवासियों को लेकर एक विशाल हिंसक विद्रोह की योजना बनाई| 10 अगस्त की सुबह उन्होंने ट्यूलेरिए के महल पर धावा बोल दिया राजा के रक्षकों को मार डाला खुद राजा को कई घंटों तक बंधक बनाये रखा| बाद में असेंबली ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया| नए चुनाव कराये गए| 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी पुरुषों - चाहे उनके पास संपत्ति हो या नहीं - को मतदान का अधिकार दिया गया|

·      नवनिर्वाचित असेंबली को कन्वेंशन का नाम दिया गया| 21 सितम्बर 1792 को इसने राजतंत्र का अंत कर दिया और फ्रांस को एक गणतंत्र घोषित किया|

·      लुई सोलहवें को न्यायालय द्वारा देशद्रोह के आरोप में मौत की सजा सुना दी गई|

·      21 जनवरी 1793 को प्लेस डी लॉ कॉन्कॉर्ड में उसे सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गयी|

आतंक राज

·      वर्ष 1793 से 1794 तक के काल को आतंक का युग कहा जाता है|

·      रोबेस्प्येर ने नियंत्रण एवं दंड की सख्त नीति अपनायी|

·      उनके हिसाब से गणतंत्र के जो भी शत्रु थे कुलीन एवं पादरी, अन्य राजनितिक दलों के सदस्य, उनकी कार्यशैली से असहमति रखने वाले पार्टी सदस्य, उन सभी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और एक क्रान्तिकारी न्यायालय द्वारा उन पर मुकदमा चलाया गया यदि न्यायालय उन्हें दोषी पाता तो गिलोटिन पर चढ़ाकर उनका सर कलम कर दिया जाता था|

·      गिलोटिन दो खंभों के बीच लटकते आरे वाली मशीन थी जिस पर रख कर अपराधी का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था|

·      रोबेस्प्येर सरकार ने कानून बना कर मजदूरी एवं कीमतों की अधिकतम सीमा तय कर दी थी| गोश्त एवं पावरोटी की राशनिंग कर दी गयी किसान अपना अनाज शहर में ले जाकर सरकार द्वारा तय कीमत पर बेचने के लिए बाध्य हुए|

·      महँगे सफेद आटे के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई सभी नागरिकों के लिए साबुत गेहूँ से बनी और बराबरी का प्रतीक मानी जाने वाली समता रोटी खाना अनिवार्य कर दिया गया|

·      बोलचाल और संबोधन में भी बराबरी का आचार-व्यवहार लागू करने की कोशिश की गयी परम्परागत मॉन्स्यूर (महाशय) एवं मदाम (महोदया) के स्थान पर अब सभी फ्रांसीसी पुरुषों एवं महिलाओं को सितोयेन (नागरिक) एवं सितोयीन (नागरिका) नाम से संबोधित किया जाने लगा|

·      रोबेस्प्येर ने अपनी नीतियों को इतनी सख्ती से लागू किया कि उसके समर्थक भी त्राहि-त्राहि करने लगे| अंतत: जुलाई 1794 में न्यायालय द्वारा उसे दोषी ठहराया गया और गिरफ्तार करके अगले ही दिन उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया|

डिरेक्ट्री शासित फ्रांस

·      जैकोबिन सरकार के पतन के बाद मध्य वर्ग के संपन्न तबके के पास सत्ता गई| नए संविधान के तहत सम्पत्तिहीन तबके को मताधिकार से वंचित कर दिया गया इस संविधान में दो चुनी हुई विधान परिषदों का प्रावधान था इन परिषदों ने पांच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका-डिरेक्ट्री-को नियुक्त किया| इस प्रावधान के जरिए जैकोबिनों के शासनकाल वाली एक व्यक्ति-केंद्रित कार्यपालिका से  बचने की कोशिश की गयी लेकिन डिरेक्टरों का झगड़ा अक्सर विधान परिषदों से होता और तब परिषद उन्हें बर्खास्त करने की कोशिश करती डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह- नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया|

·      सरकार के स्वरूप में इन सभी परिवर्तनों के दौरान - स्वतंत्रता, विधिसम्मत समानता और बंधुत्व प्रेरक आदर्श बने रहे| इन मूल्यों ने आगामी सदी में सिर्फ फ्रांस बल्कि बाकि यूरोप के राजनीतिक आंदोलनों को भी प्रेरित किया

क्या महिलाओं के लिए भी क्रांति हुई?

·      अधिकांश महिलाओं के पास पढाई-लिखाई तथा व्यवसायिक प्रशिक्षण के मौके नहीं थे केवल कुलीनों की लड़कियाँ अथवा तीसरे एस्टेट के धनी परिवारों की लड़कियाँ ही कॉन्वेंट में पढ़ पाती थी कामकाजी महिलाओं को अपने परिवार का पालन-पोषण भी करना पड़ता था उनकी मजदूरी पुरुषों की तुलना में कम थी|

·      महिलाओं ने अपने हितों की हिमायत करने और उन पर चर्चा करने के लिए खुद के राजनीतिक क्लब शुरू किए और अखबार निकाले|

·      फ्रांस के विभिन्न नगरों में महिलाओं के लगभग 60 क्लब अस्तित्व में आये उनमें सोसाइटी ऑफ रेवलूशनरी एंड रिपब्लिकन वीमेन सबसे मशहूर क्लब था उनकी एक प्रमुख माँग यह थी कि महिलाओं को पुरुषों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए महिलाएं इस बात से निराश हुई कि 1791 के संविधान में उन्हें निष्क्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया था|

·      महिलाओं ने मताधिकार, असेंबली के लिए चुने जाने तथा राजनीतिक पदों की माँग रखी इनका मानना था कि तभी नयी सरकार में उनके हितों का प्रतिनिधित्व हो पाएगा|

·      प्रारम्भिक वर्षों में क्रान्तिकारी सरकार ने महिलाओं के जीवन में सुधार लाने वाले कुछ कानून लागू किए जैसे सरकारी विद्यालयों की स्थापना के साथ ही सभी लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया| अब पिता उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ शादी के लिए बाध्य नहीं कर सकते थे| शादी को स्वैच्छिक अनुबंध माना गया और नागरिक कानूनों के तहत उनका पंजीकरण किया जाने लगा| तलाक को क़ानूनी रूप दे दिया गया|

·      फिर भी राजनीतिक अधिकारों के लिए महिलाओं का संघर्ष जारी रहा| आतंक राज के दौरान सरकार ने महिला क्लबों को बंद करने और उनकी राजनितिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून लागू किया| मताधिकार और समान वेतन के लिए महिलाओं का आंदोलन अगली सदी में भी अनेक देशों में चलता रहा| मताधिकार का संघर्ष उन्नीसवीं सदी के अंत एवं बीसवीं सदी के प्रारंभ तक अंतराष्ट्रीय मताधिकार आंदोलन के जरिए जारी रहा|

·      अंततः वर्ष 1946 में फ्रांस की महिलाओं ने मताधिकार हासिल कर लिया|

 

दास प्रथा का उन्मूलन

·      फ्रांसीसी उपनिवेशों में दास-प्रथा का उन्मूलन जैकोबिन शासन के क्रांतिकारी सामाजिक सुधारों में से एक था| कैरिबिआई उपनिवेश - मर्टिनिक, गॉडेलोप और सैन डोमिंगोंतम्बाकू नील, चीनी, कॉफ़ी जैसी वस्तुओं के महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता थे| अपरिचित एवं दूर देश जाने और काम करने के प्रति यूरोपियों की अनिच्छा का मतलब था-बागानों में श्रम की कमी| इस कमी को यूरोप, अफ्रीका एवं अमेरिका के बीच त्रिकोणीय दास-व्यापार द्वारा पूरा किया गया| दास व्यापार सत्रहवीं शताब्दी में शुरू हुआ फ़्रांसिसी सौदागर बोर्दे या नान्ते बंदरगाह से अफ्रीका तट पर जहाज ले जाते थे जहाँ वे स्थानीय सरदारों से दास खरीदते थे फिर उन दासों को कैरिबिआई देशों में बागान-मालिकों को बेच दिया जाता था| दास-श्रम के बल पर यूरोपीय बाजारों में चीनी, कॉफ़ी, एवं नील की बढ़ती मांग को पूरा करना संभव हुआ|

·      वर्ष 1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित कर दिया परन्तु यह कानून एक छोटी-सी अवधि तक ही लागू रहा| दस वर्ष बाद नेपोलियन ने दास प्रथा पुनः शुरू कर दी| बागान-मालिकों को अपने आर्थिक हित साधने के लिए अफ्रीकी नीग्रो लोगों को गुलाम बनाने की स्वतंत्रता मिल गयी फ़्रांसिसी उपनिवेशों से अंतिम रूप से दास-प्रथा का उन्मूलन 1848 में किया गया|

क्रांति और रोज़ाना जिंदगी

·      वर्ष 1789 में सेंसरशिप की समाप्ति का कानून अस्तित्व में आया|

·      प्राचीन राजतंत्र के अंतर्गत तमाम सामग्री सांस्कृतिक गतिविधियों किताब, अखबार, नाटक को राजा के सेंसर अधिकारियों द्वारा पास किए जाने के बाद ही प्रकाशित या मंचित किया जा सकता था परन्तु अब अधिकारों के घोषणापत्र ने भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया|

·      प्रेस की स्वतंत्रता का अर्थ था कि किसी भी घटना पर परस्पर विरोधी विचार भी व्यक्त किये जा सकते थे|

सारांश

·      1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया

·      नेपोलियन खुद को यूरोप के आधुनिकीकरण का अग्रदूत मानता था| उसने निजी संपत्ति की सुरक्षा के कानून बनाए और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली चलाई| 1815 में वाटरलू में उसकी हार हुई|

·      यूरोप के बाकी हिस्सों में मुक्ति और आधुनिक कानूनों को फैलाने वाले उसके क्रान्तिकारी उपायों का असर उसकी मृत्यु के काफी समय बाद सामने आया|

 

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